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Fasla शायरी | शाही शायरी

Fasla

20 शेर

कितने शिकवे गिले हैं पहले ही
राह में फ़ासले हैं पहले ही

फ़ारिग़ बुख़ारी




मसअला ये है कि उस के दिल में घर कैसे करें
दरमियाँ के फ़ासले का तय सफ़र कैसे करें

फ़र्रुख़ जाफ़री




दुनिया तो चाहती है यूँही फ़ासले रहें
दुनिया के मश्वरों पे न जा उस गली में चल

हबीब जालिब




ज़ेहन ओ दिल के फ़ासले थे हम जिन्हें सहते रहे
एक ही घर में बहुत से अजनबी रहते रहे

इफ़्फ़त ज़र्रीं




न हो कि क़ुर्ब ही फिर मर्ग-ए-रब्त बन जाए
वो अब मिले तो ज़रा उस से फ़ासला रखना

इफ़्तिख़ार नसीम




जो पहले रोज़ से दो आँगनों में था हाइल
वो फ़ासला तो ज़मीन आसमान में भी न था

जमाल एहसानी




मोहब्बत की तो कोई हद, कोई सरहद नहीं होती
हमारे दरमियाँ ये फ़ासले, कैसे निकल आए

ख़ालिद मोईन