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सुनो! अब हम मोहब्बत में बहुत आगे निकल आए | शाही शायरी
suno! ab hum mohabbat mein bahut aage nikal aae

ग़ज़ल

सुनो! अब हम मोहब्बत में बहुत आगे निकल आए

ख़ालिद मोईन

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सुनो! अब हम मोहब्बत में बहुत आगे निकल आए
कि इक रस्ते पे चलते चलते सौ रस्ते निकल आए

अगरचे कम न थी, चारागरान-ए-शहर की पुर्सिश
मगर! कुछ ज़ख़्म-ए-ना-दीदा बहुत गहरे निकल आए

मोहब्बत की तो कोई हद, कोई सरहद नहीं होती
हमारे दरमियाँ ये फ़ासले, कैसे निकल आए

बहुत दिन तक हिसार-ए-नश्शा यकताई में रक्खा
फिर इस चेहरे के अंदर भी कई चेहरे निकल आए

पुराने ज़ख़्म भरते ही, नए ज़ख़्मों के शैदाई
मिज़ाज-ए-आइना ओढ़े हुए घर से निकल आए

तज़ाद-ए-ज़ात के बाइस खुला वो कम-सुख़न ऐसा
अधूरी बात के मफ़्हूम भी पूरे निकल आए