उसे ख़बर है कि अंजाम-ए-वस्ल क्या होगा
वो क़ुर्बतों की तपिश फ़ासले में रखती है
ख़ालिद यूसुफ़
क़रीब आओ तो शायद समझ में आ जाए
कि फ़ासले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं
मुज़फ़्फ़र रज़्मी
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फ़ासला नज़रों का धोका भी तो हो सकता है
वो मिले या न मिले हाथ बढ़ा कर देखो
निदा फ़ाज़ली
शायद कि ख़ुदा में और मुझ में
इक जस्त का और फ़ासला है
उबैदुल्लाह अलीम
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इश्क़ में भी सियासतें निकलीं
क़ुर्बतों में भी फ़ासला निकला
रसा चुग़ताई
हद-बंदी-ए-ख़िज़ाँ से हिसार-ए-बहार तक
जाँ रक़्स कर सके तो कोई फ़ासला नहीं
साक़ी फ़ारुक़ी