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आरजू शायरी | शाही शायरी

आरजू

66 शेर

दिल-ए-वीराँ को देखते क्या हो
ये वही आरज़ू की बस्ती है

सैफ़ुद्दीन सैफ़




आरज़ू हसरत और उम्मीद शिकायत आँसू
इक तिरा ज़िक्र था और बीच में क्या क्या निकला

सरवर आलम राज़




है हुसूल-ए-आरज़ू का राज़ तर्क-ए-आरज़ू
मैं ने दुनिया छोड़ दी तो मिल गई दुनिया मुझे

सीमाब अकबराबादी




कटती है आरज़ू के सहारे पे ज़िंदगी
कैसे कहूँ किसी की तमन्ना न चाहिए

शाद आरफ़ी




तुम्हारी आरज़ू में मैं ने अपनी आरज़ू की थी
ख़ुद अपनी जुस्तुजू का आप हासिल हो गया हूँ मैं

शहज़ाद अहमद




मुद्दत से आरज़ू है ख़ुदा वो घड़ी करे
हम तुम पिएँ जो मिल के कहीं एक जा शराब

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




खुल गया उन की आरज़ू में ये राज़
ज़ीस्त अपनी नहीं पराई है

शकील बदायुनी