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तेरी आँखों में रंग-ए-मस्ती है | शाही शायरी
teri aankhon mein rang-e-masti hai

ग़ज़ल

तेरी आँखों में रंग-ए-मस्ती है

सैफ़ुद्दीन सैफ़

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तेरी आँखों में रंग-ए-मस्ती है
हाँ मुझे ए'तिबार-ए-हस्ती है

मेरा होना भी कोई होना है
मेरी हस्ती भी कोई हस्ती है

जान का रोग है ये गिर्या-ए-ग़म
उम्र भर ये घटा बरसती है

जिस तरह चाँदनी मज़ारों पर
दिल पे यूँ बे-कसी बरसती है

दिल-ए-वीराँ को देखते क्या हो
ये वही आरज़ू की बस्ती है

'सैफ़' इस ज़िंदगी को क्या कहिए
एक मय्यत-ब-दोश हस्ती है