ख़्वाहिशों ने डुबो दिया दिल को
वर्ना ये बहर-ए-बे-कराँ होता
इस्माइल मेरठी
थी छेड़ उसी तरफ़ से वर्ना
मैं और मजाल आरज़ू की
इस्माइल मेरठी
टैग:
| आरजू |
| 2 लाइन शायरी |
जान-लेवा थीं ख़्वाहिशें वर्ना
वस्ल से इंतिज़ार अच्छा था
जौन एलिया
तुम्हारी याद में जीने की आरज़ू है अभी
कुछ अपना हाल सँभालूँ अगर इजाज़त हो
जौन एलिया
इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद
कैफ़ी आज़मी
तिरी वफ़ा में मिली आरज़ू-ए-मौत मुझे
जो मौत मिल गई होती तो कोई बात भी थी
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
तमन्ना तिरी है अगर है तमन्ना
तिरी आरज़ू है अगर आरज़ू है
ख़्वाजा मीर 'दर्द'