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आरजू शायरी | शाही शायरी

आरजू

66 शेर

आरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्या
क्या बताऊँ कि मेरे दिल में है अरमाँ क्या क्या

अख़्तर शीरानी




ग़म-ए-ज़माना ने मजबूर कर दिया वर्ना
ये आरज़ू थी कि बस तेरी आरज़ू करते

अख़्तर शीरानी




इक वो कि आरज़ुओं पे जीते हैं उम्र भर
इक हम कि हैं अभी से पशीमान-ए-आरज़ू!

अख़्तर शीरानी




नुमूद-ए-रंग-ओ-बू ने मार डाला
उसी की आरज़ू ने मार डाला

अमीन हज़ीं




बाद मरने के भी छोड़ी न रिफ़ाक़त मेरी
मेरी तुर्बत से लगी बैठी है हसरत मेरी

even after death my love did not forsake
at my grave my desires kept a steady wake

अमीर मीनाई




यार पहलू में है तन्हाई है कह दो निकले
आज क्यूँ दिल में छुपी बैठी है हसरत मेरी

my love beside me, solitude, tell them to play a part
why do my desires cower hidden in my heart

अमीर मीनाई




कभी मौज-ए-ख़्वाब में खो गया कभी थक के रेत पे सो गया
यूँही उम्र सारी गुज़ार दी फ़क़त आरज़ू-ए-विसाल में

असअ'द बदायुनी