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मैं क्या हूँ कौन हूँ ये भी ख़बर नहीं मुझ को | शाही शायरी
main kya hun kaun hun ye bhi KHabar nahin mujhko

ग़ज़ल

मैं क्या हूँ कौन हूँ ये भी ख़बर नहीं मुझ को

हादी मछलीशहरी

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मैं क्या हूँ कौन हूँ ये भी ख़बर नहीं मुझ को
वो इस तरह मिरी हस्ती पे छाए जाते हैं

ख़याल ही अभी आया था कू-ए-जानाँ का
ये हाल है कि क़दम डगमगाए जाते हैं

वो पूछते हैं दिल-ए-मुब्तला का हाल और हम
जवाब में फ़क़त आँसू बहाए जाते हैं

कहाँ है शौक़ बता ग़ैरत-ए-कशिश तेरी
वो मेरी ख़ाक से दामन बचाए जाते हैं

मिटा रहे हैं वो क्यूँ दाग़-हा-ए-दिल 'हादी'
चराग़ क्यूँ ये जला कर बुझाए जाते हैं