ख़्वाब का रिश्ता हक़ीक़त से न जोड़ा जाए
आईना है इसे पत्थर से न तोड़ा जाए
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
मैं तो 'मुनीर' आईने में ख़ुद को तक कर हैरान हुआ
ये चेहरा कुछ और तरह था पहले किसी ज़माने में
मुनीर नियाज़ी
ये सुब्ह की सफ़ेदियाँ ये दोपहर की ज़र्दियाँ
अब आईने में देखता हूँ मैं कहाँ चला गया
नासिर काज़मी
आइना देख के कहते हैं सँवरने वाले
आज बे-मौत मरेंगे मिरे मरने वाले
on seeing her own reflection she is moved to say
ere their time, my paramours shall perish this day
रशीद रामपुरी
देखिएगा सँभल कर आईना
सामना आज है मुक़ाबिल का
रियाज़ ख़ैराबादी
हमें माशूक़ को अपना बनाना तक नहीं आता
बनाने वाले आईना बना लेते हैं पत्थर से
सफ़ी औरंगाबादी
बे-साख़्ता बिखर गई जल्वों की काएनात
आईना टूट कर तिरी अंगड़ाई बन गया
साग़र सिद्दीक़ी