सितारा-ए-ख़्वाब से भी बढ़ कर ये कौन बे-मेहर है कि जिस ने
चराग़ और आइने को अपने वजूद का राज़-दाँ किया है
ग़ुलाम हुसैन साजिद
कोई मुँह फेर लेता है तो 'क़ासिर' अब शिकायत क्या
तुझे किस ने कहा था आइने को तोड़ कर ले जा
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
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मैं तिरे वास्ते आईना था
अपनी सूरत को तरस अब क्या है
ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
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आइना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
गुलज़ार
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उन की यकताई का दावा मिट गया
आइने ने दूसरा पैदा किया
हफ़ीज़ जौनपुरी
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मुद्दतें गुज़रीं मुलाक़ात हुई थी तुम से
फिर कोई और न आया नज़र आईने में
हनीफ़ कैफ़ी
आइना देख के फ़रमाते हैं
किस ग़ज़ब की है जवानी मेरी
इम्दाद इमाम असर