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4 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

4 लाइन शायरी

446 शेर

डूब जाते हैं उमीदों के सफ़ीने इस में
मैं न मानूँगा कि आँसू है ज़रा सा पानी

when hope and aspirations drown in them so easily
that tears are just some water, how can I agree

जोश मलसियानी




जिस को तुम भूल गए याद करे कौन उस को
जिस को तुम याद हो वो और किसे याद करे

him whom you have forgotten who else will recall
he who thinks of you will think of no one else at all

जोश मलसियानी




मक़्बूल हों न हों ये मुक़द्दर की बात है
सज्दे किसी के दर पे किए जा रहा हूँ मैं

whether or not accepted, it is up to fate
at her doorstep on and on, I myself prostrate

जोश मलसियानी




ये अदा हुई कि जफ़ा हुई ये करम हुआ कि सज़ा हुई
उसे शौक़-ए-दीद अता किया जो निगह की ताब न ला सके

is this grace or torment, a favour or a punishment
Lust for sight he has got, but no vision to present

जोश मलसियानी




गुल से लिपटी हुई तितली को गिरा कर देखो
आँधियो तुम ने दरख़्तों को गिराया होगा

trees you may have rooted out, o storms but now this hour
lets see you drop the butterfly thats clinging to the flowe

कैफ़ भोपाली




मय-कदे की तरफ़ चला ज़ाहिद
सुब्ह का भूला शाम घर आया

the priest now proceeds towards the tavern's door
to the true path returns he who strayed before

कलीम आजिज़




नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है
उन की आग़ोश में सर हो ये ज़रूरी तो नहीं

E'en on a bed of pain, sleep well could come
In her arms,merely, recumbent, it need not be

ख़ामोश ग़ाज़ीपुरी