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उम्र जल्वों में बसर हो ये ज़रूरी तो नहीं | शाही शायरी
umr jalwon mein basar ho ye zaruri to nahin

ग़ज़ल

उम्र जल्वों में बसर हो ये ज़रूरी तो नहीं

ख़ामोश ग़ाज़ीपुरी

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उम्र जल्वों में बसर हो ये ज़रूरी तो नहीं
हर शब-ए-ग़म की सहर हो ये ज़रूरी तो नहीं

In splendour, life be ever spent, it need not be
That every woe filled night relent, it need not be

चश्म-ए-साक़ी से पियो या लब-ए-साग़र से पियो
बे-ख़ुदी आठों पहर हो ये ज़रूरी तो नहीं

Wine from her glance or from a goblet drunk
Result in rapture permanent, it need not be

नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है
उन की आग़ोश में सर हो ये ज़रूरी तो नहीं

E'en on a bed of pain, sleep well could come
In her arms,merely, recumbent, it need not be

शैख़ करता तो है मस्जिद में ख़ुदा को सज्दे
उस के सज्दों में असर हो ये ज़रूरी तो नहीं

In mosques the priest does often kneel and pray
That to his pleading God consent, it need not be

सब की नज़रों में हो साक़ी ये ज़रूरी है मगर
सब पे साक़ी की नज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं

Each person surely seeks her favour, but
Each person be in her intent, it need not be