हुआ है हिन्द के सब्ज़ों का आशिक़
न होवें 'आबरू' के क्यूँ हरे बख़्त
आबरू शाह मुबारक
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इक अर्ज़ सब सीं छुप कर करनी है हम कूँ तुम सीं
राज़ी हो गर कहो तो ख़ल्वत में आ के कर जाँ
आबरू शाह मुबारक
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इश्क़ का तीर दिल में लागा है
दर्द जो होवता था भागा है
आबरू शाह मुबारक
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इश्क़ की सफ़ मनीं नमाज़ी सब
'आबरू' को इमाम करते हैं
आबरू शाह मुबारक
जंगल के बीच वहशत घर में जफ़ा ओ कुल्फ़त
ऐ दिल बता कि तेरे मारे हम अब किधर जाँ
आबरू शाह मुबारक
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जब कि ऐसा हो गंदुमी माशूक़
नित गुनहगार क्यूँ न हो आदम
आबरू शाह मुबारक
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जब सीं तिरे मुलाएम गालों में दिल धँसा है
नर्मी सूँ दिल हुआ है तब सूँ रुई का गाला
आबरू शाह मुबारक
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