जलते हैं और हम सीं जब माँगते हो प्याला
होते हैं दाग़ दिल में जूँ जूँ कते हो ला ला
बिक्सा है तमाम ज़ालिम तुझ चश्म का दुंबाला
लागा है उस के दिल में देखा है जिन में भाला
उस शोख़-ए-सर्व-क़द कूँ हम जानते थे भोला
मिल ऊपरी तरह सीं क्या दे गया है बाला
ऐ सर्द-मेहर तुझ सीं ख़ूबाँ जहाँ के काँपे
ख़ुर्शीद थरथराया और माह देख हाला
जब सीं तिरे मुलाएम गालों में दिल धँसा है
नर्मी सूँ दिल हुआ है तब सूँ रुई का गाला
फ़ौजाँ सीं बढ़ चले जूँ यक्का कोई सिपाही
यूँ ख़ाल छूट ख़त सें मुख पर रहे निराला
क्यूँकर पड़े न मेरे गिर्ये का शोर जग में
उमडा है मुझ नयन सीं अंझुवाँ के साथ नाला
जोगी हुआ पे नाता लालच का छोड़ता नहीं
कहता है सब कूँ बाबा जपता फिरे है माला
झमकी दिखा निगह की दिल छीन ले चली हैं
ये किस तिरी अँखियों कूँ सिखला दिया छिनालो
अशआ'र 'आबरू' के रश्क-ए-गुहर हुए हैं
दाग़-ए-सुख़न सीं उस को लूलू हुआ है लाला
ग़ज़ल
जलते हैं और हम सीं जब माँगते हो प्याला
आबरू शाह मुबारक