आज यारों को मुबारक हो कि सुब्ह-ए-ईद है
राग है मय है चमन है दिलरुबा है दीद है
आबरू शाह मुबारक
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अब दीन हुआ ज़माना-साज़ी
आफ़ाक़ तमाम दहरिया है
आबरू शाह मुबारक
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अफ़्सोस है कि बख़्त हमारा उलट गया
आता तो था पे देख के हम कूँ पलट गया
आबरू शाह मुबारक
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अगर देखे तुम्हारी ज़ुल्फ़ ले डस
उलट जावे कलेजा नागनी का
आबरू शाह मुबारक
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ऐ सर्द-मेहर तुझ सीं ख़ूबाँ जहाँ के काँपे
ख़ुर्शीद थरथराया और माह देख हाला
आबरू शाह मुबारक
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बोसाँ लबाँ सीं देने कहा कह के फिर गया
प्याला भरा शराब का अफ़्सोस गिर गया
आबरू शाह मुबारक
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बोसे में होंट उल्टा आशिक़ का काट खाया
तेरा दहन मज़े सीं पुर है पे है कटोरा
आबरू शाह मुबारक
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