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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

ये और बात कि इक़रार कर सकें न कभी
मिरी वफ़ा का मगर उन को ए'तिबार तो है

अलीम अख़्तर




अफ़्साना मोहब्बत का पूरा हो तो कैसे हो
कुछ है दिल-ए-क़ातिल तक कुछ है दिल-ए-बिस्मिल तक

अलीम मसरूर




अंजाम-ए-कशाकश होगा कुछ देखें तो तमाशा दीवाने
या ख़ाक उड़ेगी गर्दूं पर या फ़र्श पे तारे निकलेंगे

अलीम मसरूर




भीड़ के ख़ौफ़ से फिर घर की तरफ़ लौट आया
घर से जब शहर में तन्हाई के डर से निकला

अलीम मसरूर




जाने क्या महफ़िल-ए-परवाना में देखा उस ने
फिर ज़बाँ खुल न सकी शम्अ जो ख़ामोश हुई

अलीम मसरूर




निकले तिरी महफ़िल से तो साथ न था कोई
शायद मिरी रुस्वाई कुछ दूर चली होगी

अलीम मसरूर




उठ के उस बज़्म से आ जाना कुछ आसान न था
एक दीवार से निकला हूँ जो दर से निकला

अलीम मसरूर