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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

अजब सी कशमकश तमाम उम्र साथ साथ थी
रखा जो रूह का भरम तो जिस्म मेरा मर गया

अलीना इतरत




ब'अद मुद्दत मुझे नींद आई बड़े चैन की नींद
ख़ाक जब ओढ़ ली और ख़ाक बिछा ली मैं ने

अलीना इतरत




हम हवा से बचा रहे थे जिन्हें
उन चराग़ों से जल गए शायद

अलीना इतरत




जिन के मज़बूत इरादे बने पहचान उन की
मंज़िलें आप ही हो जाती हैं आसान उन की

अलीना इतरत




किसी के वास्ते तस्वीर-ए-इंतिज़ार थे हम
वो आ गया प कहाँ ख़त्म इंतिज़ार हुआ

अलीना इतरत




कुछ कड़े टकराओ दे जाती है अक्सर रौशनी
जूँ चमक उठती है कोई बर्क़ तलवारों के बेच

अलीना इतरत




मौसम-ए-गुल पर ख़िज़ाँ का ज़ोर चल जाता है क्यूँ
हर हसीं मंज़र बहुत जल्दी बदल जाता है क्यूँ

अलीना इतरत