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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

नफ़रतों का अक्स भी पड़ने न देना ज़ेहन पर
ये अँधेरा जाने कितनों का उजाला खा गया

तुफ़ैल चतुर्वेदी




सभी ज़ख़्मों के टाँके खुल गए हैं
हमें हँसना बहुत महँगा पड़ा है

तुफ़ैल चतुर्वेदी




सभी ज़ख़्मों के टाँके खुल गए हैं
हमें हँसना बहुत महँगा पड़ा है

तुफ़ैल चतुर्वेदी




सफ़र अंजाम तक पहुँचे तो कैसे
मैं अपने रास्ते में ख़ुद खड़ा हूँ

तुफ़ैल चतुर्वेदी




सफ़र अंजाम तक पहुँचे तो कैसे
मैं अपने रास्ते में ख़ुद खड़ा हूँ

तुफ़ैल चतुर्वेदी




उस के वा'दे के एवज़ दे डाली अपनी ज़िंदगी
एक सस्ती शय का ऊँचे भाव सौदा कर लिया

तुफ़ैल चतुर्वेदी




वो मौसमों पर उछालता है सवाल कितने
कभी तो यूँ हो कि आसमाँ से जवाब बरसे

तुफ़ैल चतुर्वेदी