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क्या सुनाएँ किसी को हाल अपना | शाही शायरी
kya sunaen kisi ko haal apna

ग़ज़ल

क्या सुनाएँ किसी को हाल अपना

तिलोकचंद महरूम

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क्या सुनाएँ किसी को हाल अपना
अपने दिल में रहे मलाल अपना

शर्मसार-ए-जवाब हो न सका
बस-कि ख़ुद्दार था सवाल अपना

किस ने देखा नहीं है बाद-ए-उरूज
साया-ए-चर्ख़ में ज़वाल अपना

हसरत-ए-दीद ले चले हम तो
आप देखा करें जमाल अपना

पेच-दर-पेच गेसू-ए-मुश्कीं
जा के उलझा कहाँ ख़याल अपना

दिल असीर-ए-बला-ए-ज़ुल्फ़-ए-दराज़
महव-ए-फ़रियाद बाल बाल अपना

मौत आई न इल्तिजाओं से
और जीना हुआ वबाल अपना

है ये पुर-दर्द दास्ताँ 'महरूम'
क्या सुनाएँ किसी को हाल अपना