ताइर-ए-दिल के लिए ज़ुल्फ़ का जाल अच्छा है
हीला-साज़ी के लिए दाना-ए-ख़ाल अच्छा है
दिल के तालिब नज़र आते हैं हसीं हर जानिब
उस के लाखों हैं ख़रीदार कि माल अच्छा है
ताब-ए-नज़्ज़ारा नहीं गो मुझे ख़ुद भी लेकिन
रश्क कहता है कि ऐसा ही जमाल अच्छा है
दिल में कहते हैं कि ऐ काश न आए होते
उन के आने से जो बीमार का हाल अच्छा है
मुतमइन बैठ न ऐ राह-रव-ए-राह-ए-उरूज
तिरा रहबर है अगर ख़ौफ़-ए-ज़वाल अच्छा है
न रही बे-ख़ुदी-ए-शौक़ में इतनी भी ख़बर
हिज्र अच्छा है कि 'महरूम' विसाल अच्छा है
ग़ज़ल
ताइर-ए-दिल के लिए ज़ुल्फ़ का जाल अच्छा है
तिलोकचंद महरूम