ज़बाँ ख़ामोश मगर नज़रों में उजाला देखा
उस का इज़हार-ए-मोहब्बत भी निराला देखा
तौक़ीर अहमद
ज़रा सँभलूँ भी तो वो आँखों से पिला देता है
मेरा महबूब मुझे होश में रहने नहीं देता
तौक़ीर अहमद
अब ज़माने में मोहब्बत है तमाशे की तरह
इस तमाशे से बहलता नहीं तू भी मैं भी
तौक़ीर तक़ी
अब ज़माने में मोहब्बत है तमाशे की तरह
इस तमाशे से बहलता नहीं तू भी मैं भी
तौक़ीर तक़ी
बदन में दिल था मुअल्लक़ ख़ला में नज़रें थीं
मगर कहीं कहीं सीने में दर्द ज़िंदा था
तौक़ीर तक़ी
बदन में रूह की तर्सील करने वाले लोग
बदल गए मुझे तब्दील करने वाले लोग
तौक़ीर तक़ी
बदन में रूह की तर्सील करने वाले लोग
बदल गए मुझे तब्दील करने वाले लोग
तौक़ीर तक़ी