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बदन में रूह की तर्सील करने वाले लोग | शाही शायरी
badan mein ruh ki tarsil karne wale log

ग़ज़ल

बदन में रूह की तर्सील करने वाले लोग

तौक़ीर तक़ी

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बदन में रूह की तर्सील करने वाले लोग
बदल गए मुझे तब्दील करने वाले लोग

अबद तलक के मनाज़िर समेट लेते हैं
ज़रा सी आँख को ज़म्बील करने वाले लोग

तुम्ही बताओ तुम्हें छोड़ कर किधर जाएँ
तुम्हारी बात की तामील करने वाले लोग

किसे बताएँ कि शाख़-ए-सलीब कौन सी है
ये पात पात को इंजील करने वाले लोग

ज़मीं पे आए थे कार-ए-पयम्बरी के लिए
ज़मीं सुपुर्द-ए-अज़ाज़ील करने वाले लोग

अँधेरी रात है ख़ेमे में इक दिया भी नहीं
कहाँ हैं सब्र को क़िंदील करने वाले लोग

उबूर कर के इसे हो गए कहाँ आबाद
हयात रहगुज़र-ए-नील करने वाले लोग

हम अपने इश्क़ से दुनिया बदलना चाहते हैं
मगर ये इश्क़ की तज़लील करने वाले लोग