दामन बचा रहे थे कि चेहरा भी जल गया
किस आग से गुज़र के तिरी रौशनी में आए
तौक़ीर तक़ी
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हमारी राह में बैठेगी कब तक तेरी दुनिया
कभी तो इस ज़ुलेख़ा की जवानी ख़त्म होगी
तौक़ीर तक़ी
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हमारी राह में बैठेगी कब तक तेरी दुनिया
कभी तो इस ज़ुलेख़ा की जवानी ख़त्म होगी
तौक़ीर तक़ी
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हिज्र था बार-ए-अमानत की तरह
सो ये ग़म आख़िरी हिचकी से उठा
तौक़ीर तक़ी
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इन सुलगती हुई साँसों को नहीं देखते लोग
और समझते हैं कि जलता नहीं तू भी मैं भी
तौक़ीर तक़ी
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इन सुलगती हुई साँसों को नहीं देखते लोग
और समझते हैं कि जलता नहीं तू भी मैं भी
तौक़ीर तक़ी
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जैसे वीरान हवेली में हों ख़ामोश चराग़
अब गुज़रती हैं तिरे शहर में शामें ऐसी
तौक़ीर तक़ी
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