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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

पेड़ मुझे हसरत से देखा करते थे
मैं जंगल में पानी लाया करता था

तहज़ीब हाफ़ी




सहरा से हो के बाग़ में आया हूँ सैर को
हाथों में फूल हैं मिरे पाँव में रेत है

तहज़ीब हाफ़ी




सहरा से हो के बाग़ में आया हूँ सैर को
हाथों में फूल हैं मिरे पाँव में रेत है

तहज़ीब हाफ़ी




तमाम नाख़ुदा साहिल से दूर हो जाएँ
समुंदरों से अकेले में बात करनी है

तहज़ीब हाफ़ी




तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया

तहज़ीब हाफ़ी




वो जिस की छाँव में पच्चीस साल गुज़रे हैं
वो पेड़ मुझ से कोई बात क्यूँ नहीं करता

तहज़ीब हाफ़ी




वो जिस की छाँव में पच्चीस साल गुज़रे हैं
वो पेड़ मुझ से कोई बात क्यूँ नहीं करता

तहज़ीब हाफ़ी