अपनी मस्ती में बहता दरिया हूँ
मैं किनारा भी हूँ भँवर भी हूँ
तहज़ीब हाफ़ी
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अपनी मस्ती में बहता दरिया हूँ
मैं किनारा भी हूँ भँवर भी हूँ
तहज़ीब हाफ़ी
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बता ऐ अब्र मुसावात क्यूँ नहीं करता
हमारे गाँव में बरसात क्यूँ नहीं करता
तहज़ीब हाफ़ी
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दास्ताँ हूँ मैं इक तवील मगर
तू जो सुन ले तो मुख़्तसर भी हूँ
तहज़ीब हाफ़ी
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दास्ताँ हूँ मैं इक तवील मगर
तू जो सुन ले तो मुख़्तसर भी हूँ
तहज़ीब हाफ़ी
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इक तिरा हिज्र दाइमी है मुझे
वर्ना हर चीज़ आरज़ी है मुझे
तहज़ीब हाफ़ी
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इस लिए रौशनी में ठंडक है
कुछ चराग़ों को नम किया गया है
तहज़ीब हाफ़ी
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