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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

इस लिए रौशनी में ठंडक है
कुछ चराग़ों को नम किया गया है

तहज़ीब हाफ़ी




मैं जंगलों की तरफ़ चल पड़ा हूँ छोड़ के घर
ये क्या कि घर की उदासी भी साथ हो गई है

तहज़ीब हाफ़ी




मैं जिस के साथ कई दिन गुज़ार आया हूँ
वो मेरे साथ बसर रात क्यूँ नहीं करता

तहज़ीब हाफ़ी




मैं जिस के साथ कई दिन गुज़ार आया हूँ
वो मेरे साथ बसर रात क्यूँ नहीं करता

तहज़ीब हाफ़ी




मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ
पहली बारिश ही आख़िरी है मुझे

तहज़ीब हाफ़ी




मैं सुख़न में हूँ उस जगह कि जहाँ
साँस लेना भी शाइरी है मुझे

तहज़ीब हाफ़ी




मैं सुख़न में हूँ उस जगह कि जहाँ
साँस लेना भी शाइरी है मुझे

तहज़ीब हाफ़ी