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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

मिल के लगा है आज ज़माने ठहर गए
तुझ से बिछड़ के वक़्त गुज़ारा नहीं गया

ताहिरा जबीन तारा




सजा लिया है हथेली पे हम ने उस का नाम
इस लिए तो बिछड़ जाने का मलाल न था

ताहिरा जबीन तारा




ये आँख नम थी ज़बाँ पर मगर सवाल न था
हम अपनी ज़ात में गुम थे कोई ख़याल न था

ताहिरा जबीन तारा




ये आँख नम थी ज़बाँ पर मगर सवाल न था
हम अपनी ज़ात में गुम थे कोई ख़याल न था

ताहिरा जबीन तारा




बहार अब के जो गुज़री तो फिर न आएगी
बिछड़ने वाले बिछड़ते समय ये कह गए हैं

तहसीन फ़िराक़ी




मैं जिन गलियों में पैहम बरसर-ए-गर्दिश रहा हूँ
मैं उन गलियों में इतना ख़ार पहले कब हुआ था

तहसीन फ़िराक़ी




मैं जिन गलियों में पैहम बरसर-ए-गर्दिश रहा हूँ
मैं उन गलियों में इतना ख़ार पहले कब हुआ था

तहसीन फ़िराक़ी