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कुछ ज़रूरत से कम किया गया है | शाही शायरी
kuchh zarurat se kam kiya gaya hai

ग़ज़ल

कुछ ज़रूरत से कम किया गया है

तहज़ीब हाफ़ी

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कुछ ज़रूरत से कम किया गया है
तेरे जाने का ग़म किया गया है

ता-क़यामत हरे भरे रहेंगे
इन दरख़्तों पे दम किया गया है

इस लिए रौशनी में ठंडक है
कुछ चराग़ों को नम किया गया है

क्या ये कम है कि आख़िरी बोसा
उस जबीं पर रक़म किया गया है

पानियों को भी ख़्वाब आने लगे
अश्क दरिया में ज़म किया गया है

उन की आँखों का तज़्किरा कर के
मेरी आँखों को नम किया गया है

धूल में अट गए हैं सारे ग़ज़ाल
इतनी शिद्दत से रम किया गया है