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चमन इतना ख़िज़ाँ-आसार पहले कब हुआ था | शाही शायरी
chaman itna KHizan-asar pahle kab hua tha

ग़ज़ल

चमन इतना ख़िज़ाँ-आसार पहले कब हुआ था

तहसीन फ़िराक़ी

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चमन इतना ख़िज़ाँ-आसार पहले कब हुआ था
बला का क़हत-ए-बर्ग-ओ-बार पहले कब हुआ था

हवादिस और मैं बचपन से गो लड़-भिड़ रहे थे
हवादिस का ये गहरा वार पहले कब हुआ था

मैं जिन गलियों में पैहम बरसर-ए-गर्दिश रहा हूँ
मैं उन गलियों में इतना ख़ार पहले कब हुआ था

मैं बीमार-ए-मोहब्बत यूँ तो पहले भी रहा हूँ
मगर इस ज़ोर का बीमार पहले कब हुआ था

सदा ''ना ना'' की यूँ तो गोश-ज़द होती रही है
लब-ए-लालीं से साफ़ इंकार पहले कब हुआ था

तिरा लहजा था जानाँ शीर ओ शबनम से इबारत
तिरा लहजा अभी तलवार पहले कब हुआ था

सलीब-ओ-दार पहले भी बहुत वाफ़िर नहीं थे
मगर क़हत-ए-सलीब-ओ-दार पहले कब हुआ था

मियाँ-'तहसीं' तिरी रिंदी की सुन-गुन थी हमें भी
मगर ऐसा खुला इक़रार पहले कब हुआ था