ये आँख नम थी ज़बाँ पर मगर सवाल न था
हम अपनी ज़ात में गुम थे कोई ख़याल न था
सजा लिया है हथेली पे हम ने उस का नाम
इस लिए तो बिछड़ जाने का मलाल न था
अगरचे मो'तबर ठहरे थे हम ज़माने में
हमारे पास तो ऐसा कोई कमाल न था
उसी के साथ थे हम उस से बे-ख़बर रह कर
अगरचे राब्ता उस से कोई बहाल न था
तिरे ही नाम पे ये ज़िंदगी कटी सारी
अगरचे तेरा कभी भी हमें विसाल न था
ग़ज़ल
ये आँख नम थी ज़बाँ पर मगर सवाल न था
ताहिरा जबीन तारा