बरसों पहले जिस दरिया में उतरा था
अब तक उस की गहराई है आँखों में
ताहिर अज़ीम
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बरसों पहले जिस दरिया में उतरा था
अब तक उस की गहराई है आँखों में
ताहिर अज़ीम
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इन बातों पर मत जाना जो आम हुईं
देखो कितनी सच्चाई है आँखों में
ताहिर अज़ीम
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जो बहुत बे-क़रार रखते थे
हाँ वही तो क़रार के दिन थे
ताहिर अज़ीम
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जो बहुत बे-क़रार रखते थे
हाँ वही तो क़रार के दिन थे
ताहिर अज़ीम
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जो तिरे इंतिज़ार में गुज़रे
बस वही इंतिज़ार के दिन थे
ताहिर अज़ीम
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मैं तिरे हिज्र की गिरफ़्त में हूँ
एक सहरा है मुब्तला मुझ में
ताहिर अज़ीम
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