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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

हवा का तब्सिरा ये साकिनान-ए-शहर पे था
अजीब लोग हैं पानी पे घर बनाते हैं

सय्यद अमीन अशरफ़




इक चाँद है आवारा-ओ-बेताब ओ फ़लक-ताब
इक चाँद है आसूदगी-ए-हिज्र का मारा

सय्यद अमीन अशरफ़




इक ख़ला है जो पुर नहीं होता
जब कोई दरमियाँ से उठता है

सय्यद अमीन अशरफ़




इक ख़ला है जो पुर नहीं होता
जब कोई दरमियाँ से उठता है

सय्यद अमीन अशरफ़




इस तरह चश्म-ए-नीम-वा ग़ाफ़िल भी थी बेदार भी
जैसे नशा हो रात का या सुब्ह का तड़का हुआ

सय्यद अमीन अशरफ़




जिसे ना-ख़्वाब कहते हैं उसी को ख़्वाब कहते हैं
तमीज़-ए-ख़ैर-ओ-शर में नुकता-ए-सद-मोतबर क्या है

सय्यद अमीन अशरफ़




जिसे ना-ख़्वाब कहते हैं उसी को ख़्वाब कहते हैं
तमीज़-ए-ख़ैर-ओ-शर में नुकता-ए-सद-मोतबर क्या है

सय्यद अमीन अशरफ़