इन से आवाज़-ए-कर्ब आती है
ज़र्द पत्तों पे मत चले कोई
सय्यद अनवार अहमद
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इन से आवाज़-ए-कर्ब आती है
ज़र्द पत्तों पे मत चले कोई
सय्यद अनवार अहमद
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इस पल दो पल की हस्ती में
क्या तेरा है क्या मेरा है
सय्यद अनवार अहमद
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कुछ मारके हमारे भी हम तक ही रह गए
गुमनाम इक सिपाही की ख़िदमात की तरह
सय्यद अनवार अहमद
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कुछ मारके हमारे भी हम तक ही रह गए
गुमनाम इक सिपाही की ख़िदमात की तरह
सय्यद अनवार अहमद
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वो मुझ से पूछने लगा मेरे सवाल अब
और मैं भी दे रहा हूँ जो इस के जवाब थे
सय्यद अनवार अहमद
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क्या मौसमों के टूटते रिश्तों का ख़ौफ़ है
शीशे सजा लिए हैं सभी ने दुकान पर
सय्यद अारिफ़
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