कहते थे तुझी को जान अपनी
और तेरे बग़ैर भी जिए हैं
सय्यद आबिद अली आबिद
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कोई बरसा न सर-ए-किश्त-ए-वफ़ा
कितने बादल गुहर-अफ़शाँ गुज़रे
सय्यद आबिद अली आबिद
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कोई बरसा न सर-ए-किश्त-ए-वफ़ा
कितने बादल गुहर-अफ़शाँ गुज़रे
सय्यद आबिद अली आबिद
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कुछ एहतिराम भी कर ग़म की वज़्अ'-दारी का
गिराँ है अर्ज़-ए-तमन्ना तो बार बार न कर
सय्यद आबिद अली आबिद
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मेरा जीना है सेज काँटों की
उन के मरने का नाम ताज-महल
सय्यद आबिद अली आबिद
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मेरा जीना है सेज काँटों की
उन के मरने का नाम ताज-महल
सय्यद आबिद अली आबिद
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मेरे जीने का ये उस्लूब पता देता है
कि अभी इश्क़ में कुछ काम हैं करने वाले
सय्यद आबिद अली आबिद
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