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रेत की तरह किनारों पे हैं डरने वाले | शाही शायरी
ret ki tarah kinaron pe hain Darne wale

ग़ज़ल

रेत की तरह किनारों पे हैं डरने वाले

सय्यद आबिद अली आबिद

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रेत की तरह किनारों पे हैं डरने वाले
मौज-दर-मौज गए पार उतरने वाले

आज काँटों से गरेबान छुड़ाएँ तो सही
लाला-ओ-गुल पे कभी पाँव न धरने वाले

रूप से छब से फबन से कोई आगाह नहीं
नक़्श-कार-ए-लब-ओ-आरिज़ हैं सँवरने वाले

कोई जीने का सलीक़ा हो तो मैं भी जानूँ
मौत आसान है मर जाते हैं मरने वाले

मेरे जीने का ये उस्लूब पता देता है
कि अभी इश्क़ में कुछ काम हैं करने वाले