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गर्दिश-ए-जाम नहीं रुक सकती | शाही शायरी
gardish-e-jam nahin ruk sakti

ग़ज़ल

गर्दिश-ए-जाम नहीं रुक सकती

सय्यद आबिद अली आबिद

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गर्दिश-ए-जाम नहीं रुक सकती
जो भी ऐ गर्दिश-ए-दौराँ गुज़रे

सुब्ह-ए-महशर है बला-ए-ज़ाहिर
किसी सूरत शब-ए-हिज्राँ गुज़रे

कोई बरसा न सर-ए-किश्त-ए-वफ़ा
कितने बादल गुहर-अफ़शाँ गुज़रे

इब्न-ए-आदम को न आया कोई रास
कई आज़र कई यज़्दाँ गुज़रे

ऐ ग़म-ए-यार तिरी राहों से
उम्र-भर सोख़्ता-सामाँ गुज़रे

वो जो परवाने जले रात की रात
मंज़िल-ए-इश्क़ से आसाँ गुज़रे

ग़म-ए-हस्ती के बयाबानों से
कुछ हमीं थे जो ग़ज़ल-ख़्वाँ गुज़रे

ग़म के तारीक उफ़ुक़ पर 'आबिद'
कुछ सितारे सर-ए-मिज़्गाँ गुज़रे