इस आलम-ए-वीराँ में क्या अंजुमन-आराई
दो रोज़ की महफ़िल है इक उम्र की तन्हाई
सूफ़ी तबस्सुम
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इस आलम-ए-वीराँ में क्या अंजुमन-आराई
दो रोज़ की महफ़िल है इक उम्र की तन्हाई
सूफ़ी तबस्सुम
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जाने किस की थी ख़ता याद नहीं
हम हुए कैसे जुदा याद नहीं
सूफ़ी तबस्सुम
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जब भी दो आँसू निकल कर रह गए
दर्द के उनवाँ बदल कर रह गए
सूफ़ी तबस्सुम
कौन किस का ग़म खाए कौन किस को बहलाए
तेरी बे-कसी तन्हा मैरी बेबसी तन्हा
सूफ़ी तबस्सुम
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खुल के रोने की तमन्ना थी हमें
एक दो आँसू निकल कर रह गए
सूफ़ी तबस्सुम
खुल के रोने की तमन्ना थी हमें
एक दो आँसू निकल कर रह गए
सूफ़ी तबस्सुम