हर तरफ़ ज़ीस्त की राहों में कड़ी धूप है दोस्त
बस तिरी याद के साए हैं पनाहों की तरह
सुदर्शन फ़ाख़िर
हर तरफ़ ज़ीस्त की राहों में कड़ी धूप है दोस्त
बस तिरी याद के साए हैं पनाहों की तरह
सुदर्शन फ़ाख़िर
मेरे रुकते ही मिरी साँसें भी रुक जाएँगी
फ़ासले और बढ़ा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
सुदर्शन फ़ाख़िर
मेरे रुकते ही मिरी साँसें भी रुक जाएँगी
फ़ासले और बढ़ा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
सुदर्शन फ़ाख़िर
सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं
जिस को देखा ही नहीं उस को ख़ुदा कहते हैं
सुदर्शन फ़ाख़िर
तेरे जाने में और आने में
हम ने सदियों का फ़ासला देखा
सुदर्शन फ़ाख़िर
तेरे जाने में और आने में
हम ने सदियों का फ़ासला देखा
सुदर्शन फ़ाख़िर