जाने किस की थी ख़ता याद नहीं
हम हुए कैसे जुदा याद नहीं
एक शोला सा उठा था दिल में
जाने किस की थी सदा याद नहीं
एक नग़्मा सा सुना था मैं ने
कौन था शोला-नवा याद नहीं
रोज़ दोहराते थे अफ़्साना-ए-दिल
किस तरह भूल गया याद नहीं
इक फ़क़त याद है जाना उन का
और कुछ इस के सिवा याद नहीं
तू मिरी जान-ए-तमन्ना थी कभी
ऐ मिरी जान-ए-वफ़ा याद नहीं
हम भी थे तेरी तरह आवारा
क्या तुझे बाद-ए-सबा याद नहीं
हम भी थे तेरी नवाओं में शरीक
ताइर-ए-नग़मा-सरा याद नहीं
हाल-ए-दिल कैसे 'तबस्सुम' हो बयाँ
जाने क्या याद है क्या याद नहीं
ग़ज़ल
जाने किस की थी ख़ता याद नहीं
सूफ़ी तबस्सुम