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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

उस के जाने पे ये एहसास हुआ है 'शाहिद'
वो जज़ीरा था मिरा दुख से भरे पानी में

सिद्दीक़ शाहिद




एक बेचैन समुंदर है मिरे जिस्म में क़ैद
टूट जाए जो ये दीवार तो मंज़र देखूँ

सिद्दीक़ मुजीबी




हमारे नाम लिखी जा चुकी थी रुस्वाई
हमें तो होना था यूँ भी ख़राब चारों तरफ़

सिद्दीक़ मुजीबी




इक लहू की बूँद थी लेकिन कई आँखों में थी
एक हर्फ़-ए-मो'तबर था और कई मानों में था

सिद्दीक़ मुजीबी




ख़ुद पे क्या बीत गई इतने दिनों में तुझ बिन
ये भी हिम्मत नहीं अब झाँक के अंदर देखूँ

सिद्दीक़ मुजीबी




ख़ुद पे क्या बीत गई इतने दिनों में तुझ बिन
ये भी हिम्मत नहीं अब झाँक के अंदर देखूँ

सिद्दीक़ मुजीबी




मैं ने हँसने की अज़िय्यत झेल ली रोया नहीं
ये सलीक़ा भी कोई आसान जीने का न था

सिद्दीक़ मुजीबी