मैं वो टूटा हुआ तारा जिसे महफ़िल न रास आई
मैं वो शोला जो शब भर आँख के पानी में रहता है
सिद्दीक़ मुजीबी
मैं वो टूटा हुआ तारा जिसे महफ़िल न रास आई
मैं वो शोला जो शब भर आँख के पानी में रहता है
सिद्दीक़ मुजीबी
नाख़ुदा हो कि ख़ुदा देखते रह जाते हैं
कश्तियाँ डूबती हैं उस के मकीं डूबते हैं
सिद्दीक़ मुजीबी
उठे हैं हाथ तो अपने करम की लाज बचा
वगरना मेरी दुआ क्या मिरी तलब क्या है
सिद्दीक़ मुजीबी
उठे हैं हाथ तो अपने करम की लाज बचा
वगरना मेरी दुआ क्या मिरी तलब क्या है
सिद्दीक़ मुजीबी
इस नए साल के स्वागत के लिए पहले से
हम ने पोशाक उदासी की सिला के रख ली
सिदरा सहर इमरान
मुझ को तो ख़ैर ख़ाना-बदोशी ही रास थी
तेरे लिए मकान बनाना पड़ा मुझे
सिदरा सहर इमरान