उर्यां न वो नहाया हम्माम हो कि दरिया
चश्म-ए-हुबाब ने भी उस का बदन न देखा
शऊर बलगिरामी
दीवार क्या गिरी मिरे ख़स्ता मकान की
लोगों ने मेरे सेहन में रस्ते बना लिए
सिब्त अली सबा
जब चली ठंडी हवा बच्चा ठिठुर कर रह गया
माँ ने अपने ला'ल की तख़्ती जला दी रात को
सिब्त अली सबा
जब चली ठंडी हवा बच्चा ठिठुर कर रह गया
माँ ने अपने ला'ल की तख़्ती जला दी रात को
सिब्त अली सबा
ऐसा कुछ गर्दिश-ए-दौराँ ने रखा है मसरूफ़
माजरे हो न सके हम से क़लम-बंद अपने
सिद्दीक़ शाहिद
बजा है ख़्वाब-नवर्दी प ख़्वाब ऐसे हों
खुले जो आँख तो अपना ही घर खंडर न लगे
सिद्दीक़ शाहिद
बजा है ख़्वाब-नवर्दी प ख़्वाब ऐसे हों
खुले जो आँख तो अपना ही घर खंडर न लगे
सिद्दीक़ शाहिद