मुझ को तो ख़ैर ख़ाना-बदोशी ही रास थी
तेरे लिए मकान बनाना पड़ा मुझे
सिदरा सहर इमरान
अहल-ए-हिम्मत को बलाओं पे हँसी आती है
नंग-ए-हस्ती है मुसीबत में परेशाँ होना
सिकंदर अली वज्द
बहार आए तो ख़ुद ही लाला ओ नर्गिस बता देंगे
ख़िज़ाँ के दौर में दिलकश गुलिस्तानों पे क्या गुज़री
सिकंदर अली वज्द
बहार आए तो ख़ुद ही लाला ओ नर्गिस बता देंगे
ख़िज़ाँ के दौर में दिलकश गुलिस्तानों पे क्या गुज़री
सिकंदर अली वज्द
देर से आ रही है याद तिरी
क्या तुझे याद आ रहा हूँ मैं
सिकंदर अली वज्द
दिल की बस्ती अजीब बस्ती है
ये उजड़ने के बा'द बस्ती है
सिकंदर अली वज्द
दिल की बस्ती अजीब बस्ती है
ये उजड़ने के बा'द बस्ती है
सिकंदर अली वज्द