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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

दो चार नहीं सैंकड़ों शेर उस पे कहे हैं
इस पर भी वो समझे न तो क़दमों पे झुकें क्या

शुजा ख़ावर




घर में बेचैनी हो तो अगले सफ़र की सोचना
फिर सफ़र नाकाम हो जाए तो घर की सोचना

शुजा ख़ावर




घर में बेचैनी हो तो अगले सफ़र की सोचना
फिर सफ़र नाकाम हो जाए तो घर की सोचना

शुजा ख़ावर




हम सूफ़ियों का दोनों तरफ़ से ज़ियाँ हुआ
इरफ़ान-ए-ज़ात भी न हुआ रात भी गई

शुजा ख़ावर




हज़ार रंग में मुमकिन है दर्द का इज़हार
तिरे फ़िराक़ में मरना ही क्या ज़रूरी है

शुजा ख़ावर




हज़ार रंग में मुमकिन है दर्द का इज़हार
तिरे फ़िराक़ में मरना ही क्या ज़रूरी है

शुजा ख़ावर




इसी पर ख़ुश हैं कि इक दूसरे के साथ रहते हैं
अभी तन्हाई का मतलब नहीं समझे हैं घर वाले

शुजा ख़ावर