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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

जैसा मंज़र मिले गवारा कर
तब्सिरे छोड़ दे नज़ारा कर

शुजा ख़ावर




जैसा मंज़र मिले गवारा कर
तब्सिरे छोड़ दे नज़ारा कर

शुजा ख़ावर




जिन को क़ुदरत है तख़य्युल पर उन्हें दिखता नहीं
जिन की आँखें ठीक हैं उन को तख़य्युल चाहिए

शुजा ख़ावर




जो ज़िंदा हो उसे तो मार देते हैं जहाँ वाले
जो मरना चाहता हो उस को ज़िंदा छोड़ देते हैं

शुजा ख़ावर




करम है मुझ पे किसी और के जलाने को
वो शख़्स मुझ पे कोई मेहरबान थोड़ी है

शुजा ख़ावर




करम है मुझ पे किसी और के जलाने को
वो शख़्स मुझ पे कोई मेहरबान थोड़ी है

शुजा ख़ावर




मिरे हालात को बस यूँ समझ लो
परिंदे पर शजर रक्खा हुआ है

शुजा ख़ावर