इस ए'तिबार से बे-इंतिहा ज़रूरी है
पुकारने के लिए इक ख़ुदा ज़रूरी है
हज़ार रंग में मुमकिन है दर्द का इज़हार
तिरे फ़िराक़ में मरना ही क्या ज़रूरी है
शुऊर शहर के हालात का नहीं सब को
बयान शहर के हालात का ज़रूरी है
कुछ ऐसे शेर हैं यारो जो हम नहीं कहते
हर एक बात का इज़हार क्या ज़रूरी है
'शुजाअ' मौत से पहले ज़रूर जी लेना
ये काम भूल न जाना बड़ा ज़रूरी है
ग़ज़ल
इस ए'तिबार से बे-इंतिहा ज़रूरी है
शुजा ख़ावर