घर में बेचैनी हो तो अगले सफ़र की सोचना
फिर सफ़र नाकाम हो जाए तो घर की सोचना
हिज्र में इम्कान इतने वस्ल सिर्फ़ इक वाक़िआ
वुसअत-ए-सहरा में क्या दीवार-ओ-दर की सोचना
यानी घर और दश्त दोनों लाज़िम-ओ-मलज़ूम हैं
क़ाएदा ये है इधर रहना उधर की सोचना
इस तरह जीना कि औरों का भरम क़ाएम रहे
मौत बर-हक़ है मगर उस चारा-गर की सोचना
ज़िंदगी भर ज़िंदा रहने की यही तरकीब है
उस तरफ़ जाना नहीं बिल्कुल जिधर की सोचना
तुम शुजा-ख़ावर हो दुनिया-दार और मैं जान-दार
मैं तो बस आहें भरूँगा तुम असर की सोचना
ग़ज़ल
घर में बेचैनी हो तो अगले सफ़र की सोचना
शुजा ख़ावर