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घर में बेचैनी हो तो अगले सफ़र की सोचना | शाही शायरी
ghar mein bechaini ho to agle safar ki sochna

ग़ज़ल

घर में बेचैनी हो तो अगले सफ़र की सोचना

शुजा ख़ावर

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घर में बेचैनी हो तो अगले सफ़र की सोचना
फिर सफ़र नाकाम हो जाए तो घर की सोचना

हिज्र में इम्कान इतने वस्ल सिर्फ़ इक वाक़िआ
वुसअत-ए-सहरा में क्या दीवार-ओ-दर की सोचना

यानी घर और दश्त दोनों लाज़िम-ओ-मलज़ूम हैं
क़ाएदा ये है इधर रहना उधर की सोचना

इस तरह जीना कि औरों का भरम क़ाएम रहे
मौत बर-हक़ है मगर उस चारा-गर की सोचना

ज़िंदगी भर ज़िंदा रहने की यही तरकीब है
उस तरफ़ जाना नहीं बिल्कुल जिधर की सोचना

तुम शुजा-ख़ावर हो दुनिया-दार और मैं जान-दार
मैं तो बस आहें भरूँगा तुम असर की सोचना