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सर्दी भी ख़त्म हो गई बरसात भी गई | शाही शायरी
sardi bhi KHatm ho gai barsat bhi gai

ग़ज़ल

सर्दी भी ख़त्म हो गई बरसात भी गई

शुजा ख़ावर

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सर्दी भी ख़त्म हो गई बरसात भी गई
और इस के साथ गर्मी-ए-जज़्बात भी गई

उस ने मिरी किताब का दीबाचा पढ़ लिया
अब तो कभी कभी की मुलाक़ात भी गई

मैं आसमाँ पे जा के भी तारे न ला सका
तुम भी गए उदास मिरी बात भी गई

हम सूफ़ियों का दोनों तरफ़ से ज़ियाँ हुआ
इरफ़ान-ए-ज़ात भी न हुआ रात भी गई

मिलने लगी है आम तो पीना भी कम हुआ
क़िल्लत के ख़त्म होते ही बुहतात भी गई