कुछ दिनों के लिए मंज़र से अगर हट जाओ
ज़िंदगी भर की शनासाई चली जाती है
शकील आज़मी
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मैं सो रहा हूँ तिरे ख़्वाब देखने के लिए
ये आरज़ू है कि आँखों में रात रह जाए
शकील आज़मी
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मैं सो रहा हूँ तिरे ख़्वाब देखने के लिए
ये आरज़ू है कि आँखों में रात रह जाए
शकील आज़मी
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मेरे होंटों पे ख़ामुशी है बहुत
इन गुलाबों पे तितलियाँ रख दे
शकील आज़मी
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मुझ को बिखराया गया और समेटा भी गया
जाने अब क्या मिरी मिट्टी से ख़ुदा चाहता है
शकील आज़मी
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फिर यूँ हुआ थकन का नशा और बढ़ गया
आँखों में डूबता हुआ जादा लगा हमें
शकील आज़मी
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फिर यूँ हुआ थकन का नशा और बढ़ गया
आँखों में डूबता हुआ जादा लगा हमें
शकील आज़मी
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