तिरी मेहराब में अबरू की ये ख़ाल
किधर से आ गया मस्जिद में हिन्दू
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
तिरी मेहराब में अबरू की ये ख़ाल
किधर से आ गया मस्जिद में हिन्दू
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
तिरी निगह से गए खुल किवाड़ छाती के
हिसार-ए-क़ल्ब की गोया थी फ़तह तेरे नाम
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
तुम तो बैठे हुए पे आफ़त हो
उठ खड़े हो तो क्या क़यामत हो
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
तुम तो बैठे हुए पे आफ़त हो
उठ खड़े हो तो क्या क़यामत हो
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
तुम तो बैठे हुए पुर-आफ़त हो
उठ खड़े हो तो क्या क़यामत हो
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
तुम्हारे इश्क़ में हम नंग-ओ-नाम भूल गए
जहाँ में काम थे जितने तमाम भूल गए
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम